स्त्री देवी के रूप मे

देवी के 9 रूपों का वर्णन दैवीय कथाओं में बहुत प्रचलित हैं ।असल मे ये स्त्री रूपा देवी की गाथायें है, कि किस प्रकार से देवी ने अपने स्वाभिमान ,अपने चरित्र, अपने भगतों आदि की रक्षा के लिए नौ रूप धारण किये।स्त्री ही दुर्गा है। स्त्री ही लक्ष्मी। स्त्री ही काली है ,स्त्री ही कृपालिनी,। स्त्री ही 108 देवी के स्वाहा ,स्वधा ,क्षमा ,शिवा ,धात्री, आर्या आदि रूप भी है।जैसी समय की आवश्यकता होती हैं ,स्त्री रूपी देवी वही रूप धारण कर लेती हैं।जैसा कि दुर्गा सप्तशती में वर्णन है, कि किस प्रकार से देवी ने इस संसार की रक्षा के लिए चंड, मुंड शुंभ ,निशुंभ ,रक्तबीज ,महिषासुर आदि माया रूपी राक्षसों का वध करके इस पृथ्वी की ,भगतो की ,अपने स्वाभिमान ,गौरव और चरित्र की रक्षा के लिये खड़ग ,पाश,तलवार,शूल,आदि की सहायता से माया रूपी राक्षसों का विनाश किआ तथा इस पृथ्वी को फिर से पावन बनाया।
अतः स्त्री सम्मानीय हैं। उनका इस धरा में कोई जोड़ नही ।क्योकि जिस धरा पर हम वास करते हैं वह भी स्त्री रूप पृथ्वी है ।जिस प्रकार से माता अपने बालको के पालन पोषण के लिए अपना दूध पिलाकर अपनी छाती से लिपटाकर अपने बालको को पालती है। उसी प्रकार पृथ्वी रूपा देवी अपने अन्न, जल आदि से अपने बालको का पालन पोषण करती है। और समय आने पर या अति हो जाने पर विनाश भी कर देती है ।अतः स्त्री ही है, जो लाड़ प्यार से अपनी औलादो को सींचती भी है ,और अति होने पर विनाश भी कर देती है ।जितनी स्त्री मर्मज्ञ है ,उतनी ही कठोर भी ।जितनी कोमल है ,उतनी मजबूत भी।कोमल है कमज़ोर नही तू शक्ति का नाम ही नारी है ।जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझसे हारी है।।

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